Monika garg

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लेखनी कहानी -06-Sep-2022# क्या यही प्यार है # उपन्यास लेखन प्रतियोगिता# भाग(25))

गतांक से आगे:-


आज सारा दिन वह रमनी के विषय में सोचता रहा। इसलिए उसे ऐसे लगा जैसे रमनी आयी है उससे बात करने ।पर शीघ्र ही उसे चमेली के फूलों की महक आने लगी जैसे चंचला के कमरे से आती थी । जोगिंदर नींद मे ही बड़बड़ाया,"कौन है ?कौन है वहां रमन.…ई ओहह चंचला तुम ।तुम यहां कैसे आई?

चंचला धीरे से उसके पास आयी और सीने पर सिर रखकर सुबकने लगी ,"मुझे क्यों छोड़ आये थे वहां मै तुम्हारा सदियों से इंतजार कर रही हूं और तुम ने महल छोड़ते समय एक मिनट के लिए भी मेरे विषय मे नही सोचा ।कैसे निर्मोही हो आप सूरज जी।"

चंचला उलहाना देकर बोली।

जोगिंदर की जुबान हकलाने लगी थी वो हकलाते हुए बोला,"वो वोओ…चंचला वो पत्र वाली लड़की का ब्याह है ।मेरे बचपन की दोस्त है । इसलिए उसने ब्याह मे बुलाया है ‌।"

"मै कब मना करती तुम मत जाओ।पर मुझे तो मत भूलते।अब मै तो तुम्हारी अर्धांगिनी हूं जहां तुम जाओगे मै वही जाऊंगी बहुत कर लिया इंतजार अब और नही । मुझे ऐसे अकेले छोड़कर मत जाना।" चंचला ने रोते हुए कहा।

लो जोगिंदर को जिस बात का डर था वही बात बनी ।वह चंचला से ही डर रहा था कही वह उस पर अपना हक ना जताने लगे।वह चंचला को चुप कराते हुए बोला,"ऐसा कुछ नही है मै तुम्हे छोड़ कर कही नही जा सकता ।तुम भी कुछ भी सोचती हो।"

बेटे को नींद मे जोर जोर से बड़बड़ाते सुन कर जोगिंदर की मां उसके कमरे मे आई और बल्ब जलाकर बोली,"बेटा किस से बतिया रहे हो।"

जोगिंदर हड़बड़ा कर उठा और अपनी मां को सामने देखकर घबरा गया । जोगिंदर की मां उसके पास गयी और बोली ,"कौन था बेटा ।किस से बात कर रहा था?"

जोगिंदर की आंखों मे पानी था वह मां से लिपट कर बोला,"मां जिसका डर था वही बात हुई । चंचला मेरे यहां आने से दुखी है वह वास्तव मे ही मुझे अपना पति मान रही है ।वो ये नही समझती कि उस जन्म ओर इस जन्म के बीच सदियां गुजर चुकी है ।अब मै जोगिंदर हूं रमनी का जोगिंदर उसका सूरज नही । मां अब चंचला को ये कौन समझाए गा कि अब मै उसे नही चाहता वो सूरज की ब्याहता है।*

मां का चेहरा भी पीला पड़ गया था । इकलौता बेटा ऊपरी हवा की चपेट में आ गया था ।अब तो औझा जी का ही सहारा था वही अब चंचला को समझा सकते थे।

जोगिंदर की मां उसे चुप कराते हुए बोली ,"तू चिंता मत कर ।मै कल ही ओझा जी के पास जाऊंगी वे कुछ ना कुछ उपाय बता देंगे।"

जोगिंदर को सोने के लिए कहकर वो चली गई। जोगिंदर सारी रात सोचता रहा ।कैसे वो रमनी का विवाह से पीछा छुड़ाएं गा।कल लग्न सगाई थी ।और उसके एक दिन बाद ब्याह अब जो करना था वो जल्द ही करना था ।

अगले दिन सुबह जोगिंदर जल्दी से नाश्ता करके बागों की तरफ निकल गया।

इधर रमनी जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी किसी तरह एक बार जोगिंदर से मुलाकात हो जाए वो।कितना बेहया है कैसे कल मां को कह रहा था कि अच्छा है एक चोरटी कम हो जाएगी गांव मे ।मै तो मरी जा रही हूं ये सोच सोच कर कि मै अपने जीवन साथी के रुप मे जोगिंदर के अलावा किसी और को सोच भी नही सकती और ये निर्मोही मेरे ब्याह मे मां के साथ काम मे हाथ बटाएं गा ।अभी जाकर उसकी छाती मे टक्कर मारूं गी कि तुम इतने हृदयहीन कैसे हो सकते हो जो तुम्हारी रमनी तुमसे दूर जा रही है और तुम्हें कोई फर्क ही नही पड़ता।"

वह कल से लगातार सोचे जा रही थी तभी उसे एक उपाय सूझा ।वह तैयार होकर पूजा की थाली हाथ मे लेकर मां के पास गयी और बोली ,"मां मुझे माता पार्वती का श्रृंगार करना है और मंदिर मे माथा भी टेकना है क्या मै हो आऊं मंदिर?"

रमनी की मां एक बार तो झिझकी क्यों कि रमनी बान बैठ चुकी थी ।ऐसे मे दुल्हन के साथ ऊपरी हवा जल्दी हो जाती है।फिर बोली,"चल चली जा पर चाकू साथ लेकर जाना कही ऊपरी हवा की चपेट में ना आ जाओ।"

"ठीक है मां।" रमनी की बांछे खिल गयी क्यों कि मां के सामने वह अपने मन की बात नही कर सकती थी ।

वह जल्दी जल्दी कदम बढ़ा कर जोगिंदर के बागों की ओर चल दी।

उधर जोगिंदर भी बेचैनी से टहल रहा था वह जिस तरीके से रात इशारा करके आया था कि वह कल बागों मे ही रहेगा इस हिसाब से रमनी को उससे मिलने आना चाहिए।पर अभी तक उसका कही कोई नामोनिशान नहीं था। जोगिंदर की तो जैसे जान पर बनी हुई थी।वो भी तो कहां चाची के सामने रमनी ससे मन की बात कर पाया था यही मौका था जब वे दोनों अपने मन की बात कर पाये गे।

तभी जोगिंदर को पायल की आवाज सुनाई दी।वह पहचानता था रमनी के कदमों की आहट को ।उसने पीछे मुडकर देखा तो पाया । साड़ी मे लिपटी रमनी बड़ी ही प्यारी लग रही थी । हल्का सा श्रृंगार उसकी खूबसूरती मे चार चांद लगा रहा था । हाथों मे पूजा की थाली लेकर उस की ओर ही चली आ रही थी।जैसे ही रमनी ने जोगिंदर को देखा वह पेड़ से टेक लगाकर उसे एकटक निहार रहा था ।उसने पूजा की थाली एक पेड़ की कोटर मे रखी और दौड़ कर जोगिंदर के सीने से लिपट गई और जोर जोर से मुक्के बरसाते हुए बोली,"निर्मोही ।मै चोरटी हूं । तुम्हारे बागों के आम अब सुरक्षित रहेंगे ।मै मरी जा रही हूं और तुम्हें फर्क ही नहीं पड़ रहा।"

जोगिंदर लगातार हंसे जा रहा था वह रमनी को छेड़ते हुए बोला,"क्यों तुम क्यों मरी जा रही हो । अच्छे घर जा रही हो ।बस क्या हुआ लड़का थोड़ा बड़ा है बस। तुम्हें तो ब्याह ही करना है।"

रमनी रोते हुए बोली,"कितने निष्ठुर हो।अब भी पत्थर दिल बने बैठे हो ।अब क्या मेरे मुंह से ही कहलवाओगे कि प्यार करती हूं तुमसे ।"

इतना कहकर वह जोगिंदर की छाती से लगकर सिसकने लगी । जोगिंदर ने भी कसकर उसे अपनी बाहों मे भर लिया और बोला,"पगली तू बोलने से हिचकती है और मै तेरे एक आंसू भरे पत्र से मीलों दौड़ा चला आया क्या तुम्हें मेरा प्यार दिखाई नही दे रहा ।"हां रमनी यही प्यार है " जब दो जिस्म एक जान है जाए, दूसरे का दुःख पहले के शरीर से होकर निकले हां यही प्यार है । तुम्हें पता है मै कितना चाहता हूं तूझे ।सपने मे भी किसी और की होते हुए नही देख सकता ।अब वास्तव में तो मतलब ही नही बनता कि तुम किसी से ब्याह कर लो ।ले जाऊंगा तुम्हें तुम्हारे घर से उठा कर ।रही बात तुम्हारे चोरनी होने की , बागों के आमों की क्या मेरे दिल की चोरी की हे तुमने । मल्लिका बनाकर रखूंगा तुम्हें।"

जोगिंदर उसे कसके बाहों मे जकड़े खड़ा था । अचानक रमनी सुबकने लगी,"पर जोगिंदर अब क्या होगा आज लग्न सगाई है परसों ब्याह है तुम इसे कैसे रोको गे।"

जोगिंदर हंसते हुए बोला,"पगली चिंता मत कर गांव आया ही इसलिए हूं तुझे अपना बनाकर जाऊंगा ।मैने सारा उपाय कर लिया है ।बस तुम्हें मेरा साथ देना है ।

वह धीरे धीरे रमनी को सारा प्लान बताने लगा और रमनी सब कुछ समझ कर घर चली गयी।

(क्रमशः)


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2 Comments

नंदिता राय

01-Oct-2022 09:35 PM

Nice

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Gunjan Kamal

25-Sep-2022 02:35 PM

बहुत ही सुन्दर

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